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लेखिका कामना सिंह द्वारा कोरोना पर पहला हिंदी उपन्यास ‘लॉकडाउन डेज़’

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Review By -  Dr Meena Yadav लॉकडाउन काल में सभी को विभिन्न प्रकार के तनाव महसूस हुए ख़ासकर परिजनों के स्वास्थ्य एवं अनिश्चित भविष्य को लेकर। इस परिस्थिति में तनाव से दूर रहना का सबसे अच्छा विकल्प है पुस्तकें।  ऐसे में विदुषी लेखिका कामना सिंह द्वारा कोरोना पर पहला हिंदी उपन्यास ‘ लॉकडाउन डेज़ ’ मेरी नज़र में आया।  समकालीन विषय पर पहले उपन्यास को पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पायी। तुरंत ही Amazon( Click here to buy ) से मँगवाया है। पढ़ने के बाद इस चर्चित उपन्यास पर बात करने का मौक़ा मिलेगा। पहले भी कामना सिंह द्वारा रचित कई उल्लेखनीय पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं जैसे पद्मअग्नि। ‘लॉकडाउन डेज़’ से भी बहुत उम्मीद है। Share

रेज़रेक्शन - लियो तोल्स्तोय

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किताब का नाम- रेज़रेक्शन, लेखक- लियो तोल्स्तोय Review By -  Ikkyu Tzu किताब के बारे में कुछ भी कहने से पहले एक शेर पेश करना चाहता हूँ| अर्ज़ किया है, “एक तुमसे हाथ मिलाने के वास्ते, महफ़िल में सबसे हाथ मिलाना पड़ा”| जिस दिन से विवेचन लिखना शुरू किया है, उसी दिन से ‘रेज़रेक्शन’ को टाल रहा हूँ| किताब के बारे में कुछ भी कहने में ख़ुद को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ| जैसे गाँव की विवाहित स्त्रियाँ अपने पति का नाम लेने में झिझकतीं हैं, कुछ वैसी ही झिझक मैं इस वक़्त महसूस कर रहा हूँ| यह किताब मेरे जीवन की सबसे कोमलतम एहसासों में से एक हैं| अगर कबीर होते तो कहते, ‘इक्क्यु, हीरा मिला है, गाँठ बना कर रख लो, इसे बार-बार मत खोलो’| अगर मेरी जगह Ludwig Wittgenstein होते तो, वे भी इस किताब के बारे में चुप रह जाते, “Whereof one cannot speak, thereof one must be silent.” लेकिन मैं, काफ्का की तरह, बिना कुछ बोले नहीं रह पा रहा हूँ| जब से किताब पढ़ा हूँ, ऐसा लग रहा अपने भीतर एक गर्भ लेकर घूम रहा हूँ| ज्यादा देर तक इस प्रसव-पीड़ा के साथ जीया नहीं जा सकता है| इससे पहले कि मेरी जान चली जाए, या फिर गर्भपात हो जाए, म...

Twelth Fail-Anurag Pathak

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"प्रतिभाएं अकारण आगे नहीं बढ़ती। वे बढ़ती है आपने पुरुषार्थ से, अपने समर्पण से, अपनी मेहनत से, अपने त्याग से, अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से।" आज मैंने दूसरी बार इस किताब को पढ़ा है पहली बार भी जब मैंने पढ़ा था तब भी रोया था और आज भी, शायद मैं खुद को इस उपन्यास में ढुढ पा रहा हूं, या फिर उस पीड़ा को महसूस कर पा रहा हू! लेकिन मैं इसको जितना बार भी पढ़ता हू एक नया ऊर्जा का प्रवाह अपने अंदर महसूस करता हू। मैं सिर्फ इतना ही कह कर अपनी वाणी को समाप्त करूंगा की समस्या बाहर का अंधकार का नहीं है, समस्या तब होती है जब हमरा मन सुविधाओं के लालच में समझौता के अन्धकार में डूब जाता है। मैं सभी हिन्दी प्रेमियों से कहना चाहता हूं कि सबको ये किताब एक बार जरूर पढ़नी चाहिए! धन्यवाद अनुराग पाठक जी का 🙏 Review - Pandey Ji

नया सवेरा-मलय पाठक

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# नया_सवेरा ..... लेखक -  मलय पाठक Picture Credit-  DRJ यह लीजिए मम्मी जी 3 हजार अपने पास रखिए..  नई बहू ऑफ़िस जाते समय अपने सास को बोली और सुरेखा की आंखें भर आयी ... अरे इतने सारे पैसे मुझे क्या करना है..  मम्मीजी दिन भर कितनी चीज़ों के लिए पैसे लगते हैं मैं  एक महीने से देख रही हूँ... सब्ज़ी वाला फ़्रूट वाला कभी काम वाली ज़्यादा पैसे माँगती है।। और आपकी किटीभी तो होती है रखिए मम्मीजी.. अरे तुम्हारे ससुरजी का पेंशन आता है ना .. वो थे तब उनसे माँगती थी अब बिना माँगे सरकार हर महीने दे देती है सुरेखा हंस कर बोली . मम्मी आप अपने किटी ग्रुप के साथ पिक्चर , भेल पार्टी , कोई नाटक ऐसे प्रोग्राम करा करो  अपनी ज़िंदगी जियो इन्होने बताया है कि आपने कितनी मुश्किल से इस घर को संभाला है बड़े भैया अमेरिका में है, दीदी ससुराल में ख़ुश है। अब आप भी अपनी दुनिया बनाओ . मुझे पता है आपने अपनी सारी इच्छाओं का गला घोंट के घर बनाया है आप ख़ुद के लिए जियो... इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी बातें कहाँ से सीखी है तुमने... मैं दस 12 साल की होगी उस दिन मेरी दादी बुआ के यहाँ जा रही थ...

हरियाणा में पाल गडरिया जाति को मिला SC का दर्जा, नोटिफिकेशन जारी

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हरियाणा में पाल गडरिया जाति को मिला SC का दर्जा, नोटिफिकेशन जारी UP में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया....

"अशोक चक्र " का जब issue उठा तब। पूरी Parliament में हंगामा शुरू था। .. पूरी Parliament दनदना गयी थी।..

🇮🇳"अशोक चक्र " के लिए बाबासाहब ने बहुत Struggle किया है। .. " अशोक चक्र " का जब issue उठा तब। पूरी Parliament में हंगामा शुरू था। .. पूरी Parliament दनदना गयी थी।..   पहले राष्ट्रध्वज का कलर बनाने के लिए बाबासाहब ने " पेंगाली वेंकैय्या " को चुना था। ...पेंगाली वेंकैय्या को कलर के बारे में जनाकारी थी। ... उनका संवैधानिक चयन बाबासाहब ने किया था। ,.. पेंगाली वेंकैय्या ने ध्वज का कलर तो बनाया लेकिन वो कलर ऊपर निचे थे ... मतलब सफ़ेद रंग सबके ऊपर , फिर ऑरेंज और फिर हरा। ...  बाबासाहब ने सोचा , अगर अशोक चक्र हम रखे तो वो नीले रंग में होना चाहिए , और झंडे के बिच में होना चाहिए ... ऑरेंज रंग पे " अशोक चक्र " इतना खुल के नहीं दिखेगा। ... बाबासाहब ने सोचा , अगर सफ़ेद रंग को बिच में रखा जाए जो की शांति का प्रतिक है , उसपर अशोक चक्र खुल के भी दिखेगा। .. और शांति के प्रतिक सफ़ेद रंग पे बुद्ध के शांति सन्देश का अशोक चक्र उसका मतलब बहुत गहरा होगा। ... इसलिए बाबासाहब ने वो कलर ठीक से सेट किये। .. और सफ़ेद रंग बिच में रखा ताकि उसके ऊपर " अशोक चक्र रखा जाए। ,...

"गुनाहों का देवता" धर्मवीर भारती

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यहां से खरीदें - गुनाहों का देवता "गुनाहों का देवता" किताब लगभग सभी ने पढी। खूब सराहा भी गया इस किताब को। धर्मवीर भारती ने साक्षात्कार में यह तक कहा कि चंदर और कोई नहीं स्वयं वे थे। अपने और सुधा के प्रेम को बखूबी बयां किया उन्होंने। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि 'गुनाहों का देवता' किताब के आगे की भी एक कड़ी है और वह है 'रेत की मछली' जिसे उनकी पूर्व पत्नी कांता भारती ने लिखा था। यह उपन्यास उनके टूटते बिखरते दांपत्य को बयां करता है। मैंने बहुत कोशिश की इस किताब को पाने की पर यह मुझे कहीं नहीं मिली। गूगल पर सर्च करते करते सपना सिंह के द्वारा लिखिए कुछ पंक्तियां बस मिली मुझे। यह किताब आत्मकथात्मक भी है ।अगर किसी को इस किताब के विषय में कोई जानकारी हो तो कृपया शेयर करें। """""मै शायद तब बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी ।कोर्स के बाहर का सबकुछ पढ़ना एक बुरी आदत के तौर पर मेरे व्यक्तित्व का स्थाई हिस्सा बन चुका था ।बहुत कुछ अच्छा बुरा पढ़ने के बाद हाथ आई थी ‘गुनाहो का देवता ‘। ज्यादातर लोगों का साहित्य प्रेम इस किताब को पढ़कर अंखुआता है पर मुझे य...

ट्वेल्थ फ़ेल - अनुराग पाठक

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कुछ लड़के गुरुजी के यहाँ साल भर पढ़ते पर उपलब्धि के नाम पर एक अदद प्रेमिका के अतिरिक्त उनके हाथ में कुछ नहीं आता था। कुछ प्रेमिकाओं को प्रेमी भी मिल जाते थे। अर्थात गुरुजी का यह संस्थान एक प्रेम केंद्र के रूप में अधिक विकसित हो गया था। एमएलबी कॉलेज में लड़कियाँ नहीं पढ़ती थीं और केआरजी कॉलेज में लड़के नहीं पढ़ते थे, इसलिये प्रेम के लालायित लड़के लड़कियाँ कहाँ जाते? गुरुजी ने अपना कोचिंग सेंटर खोलकर इस दिशा में महान काम किया था। चूंकि कोचिंग में सारा इन्वेस्टमेंट गुरुजी ने ही किया था, इसलिए प्रेम करने का पहला अधिकार गुरुजी अपना ही मानते थे। प्रत्येक वर्ष गुरुजी औसतन दो या तीन प्यार करते थे। पुस्तक - ट्वेल्थ फ़ेल लेखक - अनुराग पाठक Buy Here:Twelth Fail By Anurag Pathak