रेज़रेक्शन - लियो तोल्स्तोय

किताब का नाम- रेज़रेक्शन, लेखक- लियो तोल्स्तोय
Review By - Ikkyu Tzu

किताब के बारे में कुछ भी कहने से पहले एक शेर पेश करना चाहता हूँ| अर्ज़ किया है, “एक तुमसे हाथ मिलाने के वास्ते, महफ़िल में सबसे हाथ मिलाना पड़ा”| जिस दिन से विवेचन लिखना शुरू किया है, उसी दिन से ‘रेज़रेक्शन’ को टाल रहा हूँ| किताब के बारे में कुछ भी कहने में ख़ुद को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ| जैसे गाँव की विवाहित स्त्रियाँ अपने पति का नाम लेने में झिझकतीं हैं, कुछ वैसी ही झिझक मैं इस वक़्त महसूस कर रहा हूँ| यह किताब मेरे जीवन की सबसे कोमलतम एहसासों में से एक हैं| अगर कबीर होते तो कहते, ‘इक्क्यु, हीरा मिला है, गाँठ बना कर रख लो, इसे बार-बार मत खोलो’| अगर मेरी जगह Ludwig Wittgenstein होते तो, वे भी इस किताब के बारे में चुप रह जाते, “Whereof one cannot speak, thereof one must be silent.” लेकिन मैं, काफ्का की तरह, बिना कुछ बोले नहीं रह पा रहा हूँ| जब से किताब पढ़ा हूँ, ऐसा लग रहा अपने भीतर एक गर्भ लेकर घूम रहा हूँ| ज्यादा देर तक इस प्रसव-पीड़ा के साथ जीया नहीं जा सकता है| इससे पहले कि मेरी जान चली जाए, या फिर गर्भपात हो जाए, मैं अपनी स्वेच्छा से ‘जन्म’ दे देना चाहता हूँ| अभी अगर अथक कोशिश करके किसी तरह मैं चुप भी रह जाता हूँ, तो जैसे ‘इन द मूड फॉर लव’ का नायक, अंत में आपने राज़ को पेड़ के धोधर में बंद कर आता है, वैसे ही मरने से पहले मुझे भी कहीं-न-कहीं इसे विसर्जित करना ही पड़ेगा| जिसका होना एक दिन तय ही है, उसे मैं अपनी स्वेच्छा से करके मुक्त होना चाहता हूँ|  

जितना नर्वस मैं इस वक़्त हो रहा हूँ, उतना पहली बार प्रेम निवेदन करते समय भी नहीं हुआ था| जिस दिन इस किताब को पढ़ना शुरू किया था, उसी दिन से किताब मेरी नसों में खून, हड्डी में मज्जा, सीने में धड़कन और खोपड़ी में विचार बन कर घूम रही है| अगर आप कभी मेरे पास बैठें और किसी अज्ञात सुगंध से अपने नासापुटों को भरता हुआ पाएं, तो समझ लीजिए की यह महक ‘रेज़रेक्शन’ की है| इस किताब को पढ़ कर इससे अछूता नहीं रहा जा सकता है| दो अजनबी व्यक्ति जिन्होंने इस किताब को पढ़ रखी है, अगर कभी किसी मोड़ पर एक-दूसरे से टकरा जाते हैं, तो तक्षण एक दूसरे की आँखों में देख कर पहचान लेंगे कि सामने वाले ने भी ‘रेज़रेक्शन’ पढ़ रखा है| मेरी दृष्टि में, सिर्फ दो ही लोग इस दुनिया में मनुष्य कहलाने योग्य हैं- एक जिन्होंने इस किताब को पढ़ी है, और दूसरा जो इसे पढ़ना चाहता हैं| बांकी की भीड़ को मैं मनुष्य मानने से इंकार करता हूँ|    

अगर हजारों गुलाब को निचोड़ कर कोई इत्र बनाए, और फिर उस इत्र को भी किसी विधि से निचोड़ा जाए, फिर जो बनेगा उसे आप क्या कहेंगे? आपका पता नहीं, लेकिन मैं उसे तोल्स्तोय की ‘रेज़रेक्शन’ कहूँगा| ‘ऐना केरेनिना’ में तोल्स्तोय की देह है, ‘वॉर एंड पीस’ में उनका ‘मन’ है, और ‘रेज़रेक्शन’ में उनकी आत्मा है| जैसे शरीर और मन का हमें पता चलता है, और आत्मा सदा अदृश्य रहती है, वैसे ही तोल्स्तोय की ‘रेज़रेक्शन’ एक अदृश्य किताब है| बहुत ही थोड़े-से लोगों को यह पता है कि तोल्स्तोय ने ‘ऐना केरेनिना’ और ‘वॉर एंड पीस’ के अलावे एक और किताब लिखी है, जो इन दोनों जगत विख्यात किताबों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है| इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि लोगों को ‘रेज़रेक्शन' के बारे में कम पता है, आत्मा के बारे में हमेशा कम ही लोगों को पता होता है|

किताब के बारे में, मैं आपसे कुछ भी नहीं कहूँगा, ना ही इसे पढ़ने या ना पढ़ने के लिए कहूँगा| किसी को इसे पढ़ने के लिए कहना, ऐसे ही है, जैसे कोई किसी से यह कहे कि ‘भाई, मेरी गर्लफ्रेंड बड़ी सुंदर है, तू भी उससे प्यार कर|” ऐसा भला कोई कहता है क्या? नहीं कहता ना? तो, मैं भी नहीं कहूँगा| और, कुछ भी ना कहने का एक और कारण है| वह कारण बताने के लिए मुझे आपको एक कहानी सुनानी होगी| ‘लैला के प्रति मजनू की दीवानगी के किस्से सुनकर, उस प्रदेश का राजा ‘लैला’ में बड़ा उत्सुक हो गया था| उसे लगा सौन्दर्य के मामले में लैला जरूर अद्वितीय होगी| उसने लैला को देखनी की इच्छा से, उसे महल पर आमंत्रित किया| जब लैला राजा से मिलने आई, तो उसे देख कर राजा बड़ा हैरान हुआ| लैला एक बेहद ही साधारण स्त्री थी| उसे यकीन नहीं आया कि कैसे मजनू इतनी साधारण स्त्री के लिए ऐसा दीवानावार हो सकता है? उत्सुकता की खुजली से विवश होकर, राजा ने मजनू को भी महल पर बुलाया और उससे पूछा ‘तू क्यूं ऐसी साधारण स्त्री के लिए ऐसा पागल हुआ जाता है?’, इस पर मजनू ने जो जवाब दिया वह विचार करने योग्य है| मजनू ने कहा, “महराज, लैला को देखने के लिए मजनू की आँख चाहिए| लैला साधारण स्त्री नहीं है, आपकी आँख साधारण है|”

तो, ‘रेज़रेक्शन’ को आप बिना तैयारी के नहीं पढ़ सकते हैं| अगर आपने बिना तैयारी के इसे पढ़ा तो आप इसकी कहानी यानि देह में ही उलझ कर रह जाएँगे| इसकी आत्मा से आप परिचित नहीं हो पाएँगे| और देह कितना ही सुन्दर क्यों ना हो, आत्मा के सौन्दर्य से उसकी तुलना नहीं की जा सकती है| ‘रेज़रेक्शन’ की आत्मा को आप तभी आत्मसात कर सकते हैं, जब आपके पास भी ‘आत्मा’ हो|

इसीलिए, सिर्फ कहानी पढ़ने की दृष्टि से यदि आप इसे पढ़ना चाहते हों, तो मेरी मानिए इसे हाथ भी मत लगाइए| यह आपके काम की किताब नहीं है| कहानियां वो अच्छी होती हैं, जिन्हें कलम से लिखी जाती है, मशाल से नहीं| इस किताब को तोल्स्तोय ने कलम से नहीं मशाल से लिखी है| सो, अगर घर जलाने की तैयारी हो, तो इसे पढ़िए| अगर, ख़ुद को खोने की हिम्मत हो, तो इसे हाथ लगाइये| अन्यथा, पोगो देखिये, और चेतन भगत, अमीश, और रोबिन शर्मा को पढ़िए| 
-इक्क्यु केंशो तजु

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