Twelth Fail-Anurag Pathak
"प्रतिभाएं अकारण आगे नहीं बढ़ती। वे बढ़ती है आपने पुरुषार्थ से, अपने समर्पण से, अपनी मेहनत से, अपने त्याग से, अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से।"
आज मैंने दूसरी बार इस किताब को पढ़ा है पहली बार भी जब मैंने पढ़ा था तब भी रोया था और आज भी, शायद मैं खुद को इस उपन्यास में ढुढ पा रहा हूं, या फिर उस पीड़ा को महसूस कर पा रहा हू! लेकिन मैं इसको जितना बार भी पढ़ता हू एक नया ऊर्जा का प्रवाह अपने अंदर महसूस करता हू। मैं सिर्फ इतना ही कह कर अपनी वाणी को समाप्त करूंगा की समस्या बाहर का अंधकार का नहीं है, समस्या तब होती है जब हमरा मन सुविधाओं के लालच में समझौता के अन्धकार में डूब जाता है।
मैं सभी हिन्दी प्रेमियों से कहना चाहता हूं कि सबको ये किताब एक बार जरूर पढ़नी चाहिए!
धन्यवाद अनुराग पाठक जी का 🙏