बुद्धिज्म ही भारतीय संस्कृति की मुख्य लोकधारा -- भाग 1 लेखक--संदीप जावले ________________________ मानव जीवन को सुखी व संपन्न बनाने के लिए स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व,न्याय, नीति, वैज्ञानिकता, नैतिकता इत्यादि मूल्यों की नितांत आवश्यकता है इस पर आज करीब करीब सभी लोगों को विश्वास हो गया है इन मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण विचारधारा और इस विचारधारा से ओत-प्रोत संस्कृति ही मानव विकास के मार्ग के क्रियाकलाप की सतत मुख्यधारा रही है। आज मानव समाज का जो कुछ भी विकास हुआ दिख रहा है वह इसी विचारधारा के कारण घटित हुआ है यही वस्तुस्थिति है,इन मानवीय मूल्यों व विचारधारा पर सतत बारंबार आक्रमण व आघात होते आया है फिर भी समाज में इन्हीं मूल्यों को स्थापित करने का सतत प्रयास करना आवश्यक है यह स्पष्ट है। वास्तव में ऐसे प्रयत्न पूर्वकाल से ही किए जा रहे हैं अथवा भारत में ऐसे प्रयत्नों की भव्य परंपरा रही है,आज जो लोग स्वतंत्रता,समता, बंधुत्व,न्याय, नैतिकता, वैज्ञानिकता आदि मूल्यों का उद्घोष करते हैं, मानव जीवन के चतुर्मुखी उत्थान के लिए यही मूल्य आवश्यक हैं ऐसा मानते हैं और इन मूल्यों पर आधारित...