जानिए क्यों मनाते हैं राष्ट्रीय जनजाति दिवस(15 November)
15,नवंबर,1875 || 9,जून,1900
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अमर शहीद, उलगुलान आंदोलन के जनक, क्रांति के प्रेणता, आदिवासी जनजाति के जननायक बिरसा मुंडा जी के जंयती पर हार्दिक शुभेच्छा एंव मंगलकामनाएं !
आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीय स्तर पर अमर शहीद बिरसा मुंडा जिस तरह से गौण रहे, उससे भारत के आजादी का इतिहास लिखनेवाले, इतिहासकारों की ईमानदारी पर कई सवाल हमेशा उठते हैं। क्योंकि, सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं।
सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है।
सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसे सत्य के सामने झुकना ही पड़ता है। भारत के इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचेे ऐसे ही एक तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत अमर शहीद, आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी है।
झारखंड के उलिहातु से निकलकर देश के दूसरे राज्यों में भी आदिवासियों के बीच बिरसा मुंडा क्रांतिवीर के तौर पर पूजे ही जाते हैं, साथ ही लेखकों व साहित्यकारों के लेखन के केंद्र में बतौर क्रांति नायक भी स्थापित हो चुके हैं।
15 नवंबर को बिरसा मुंडा जी की जयंती मनाई जाती है खास तौर पर तो कर्नाटक के कोडागु जिले में मनाई जाती है। कोकार रांची (जो झारखंड की राजधानी है) में उनकी समाधि स्थल पर बहुत से कार्यक्रम मनाए जाते हैं।
उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा भी है। उनके नाम से कई संस्था, कई यूनिवर्सिटी और कई इंस्टीट्यूशन भी बने है।
2008 में बिरसा मुंडा जी के जीवन पर आधारित एक हिंदी फिल्म “गाँधी से पहले गॉंधीवास” बनी जो इकबाल दुर्रन के निर्देशन में बनी जिसने नोबल पुरस्कार भी जीता है।
फिर एक और हिंदी फिल्म 2004 में “उलगुलान एक क्रांति” बनी जिसमें 500 बिर्सैट्स भी शामिल है। मशहूर समाजशास्त्री और मानव विज्ञानी कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन पर बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन नाम से बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है !
उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री,बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन मायावती जी ने अपने शासनकाल में नवाबों के शहर लखनऊ में डाॅ भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल के दूसरे भवन में अमर शहीद आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की 18 फिट ऊँची संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की है, और
भारतीय संसद में एकमात्र आदिवासी नेता हैं बिरसा मुंडा जी, जिनका चित्र टंगा हुआ है।
अमर शहीद आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा ऐसे योद्धा, महामानव का नाम है, जिन्होंने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की। उपेक्षित आदिवासी को उनका हक दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
ब्राह्मणी मनुवाद, जातिगत भेदभाव पांखडवाद को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में अमर शहीद आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा जी का नाम उल्लेखनीय है।
शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा।
यदि कोई नाम है जिसे भारत के सभी आदिवासी समुदायों ने आदर्श और प्रेरणा के रूप में स्वीकारा है तो वह सिर्फ और सिर्फ अमर शहीद महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा हैं !
उस समय भारत में अंग्रेजी शासन था आदिवासियों को अपने इलाकों में किसी भी प्रकार का दखल मंजूर नहीं था ! यही कारण रहा कि आदिवासी इलाके हमेशा स्वतंत्र रहे। अंग्रेज भी शुरू में वहां नहीं जा पाए थे,लेकिन तमाम षडयंत्रों के तहत घुसपैठ करने में कामयाब हो गए।
अंग्रेजी हुकूमत ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 में पारित कर आदिवासियों को जंगल के अधिकार से वंचित कर दिया, अमर शहीद बिरसा मुंडा एक ऐसे महायोद्धा का नाम है जिसने अपने तीर कमान से अंग्रेजी हुकूमत की गोलियों का सामना किया।
जंगे आजादी की लड़ाई में कई आदिवासी क्रांतिकारियों ने भी अहम भूमिका निभाई, इनमें से ही अमर शहीद बिरसा मुंडा जी आदिवासी नेता और जन नायक थे जो कि मुंडा जाति से संबंधित थे ! शहीद बिरसा मुंडा ने भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था उससे बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा।
सामाजिक स्तर पर आदिवासियों के इस जागरूकता से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन अंग्रेजी शासन तो बौखलाया ही, पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। ये सब बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए।
दूसरा था आर्थिक स्तर पर सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों के आर्थिक शोषण से मुक्त किया जा सके।
आदिवासियों ने 'बेगारी प्रथा' के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रूक गया।
तीसरा था राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित करना। मुंडा जी ने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी,
अतः राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी। आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था। जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए।
'उलगुलान' का ही असर है सीएनपीटी एक्ट
1 अक्टूबर 1894 को सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आंदोलन शुरू किया. 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल तक जेल में रहे. लेकिन इस दौरान भी बिरसा मुंडा के अनुयायियों ने उनके आंदोलन को जीवित रखा. जेल से छूटने के बाद बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज कर दिया।
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा मुंडा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा मुंडा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला।
1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई, जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं।
अमर शहीद बिरसा मुंडा ने साफ-साफ अंग्रेजों से कहा कि छोटानागपुर पर आदिवासियों का हक है. बिरसा ने नारा दिया कि, ‘महारानी राज तुंदु जाना ओरो अबुआ राज एते जाना’ अर्थात ‘(ब्रिटिश) महारानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो.’ इस हक की लड़ाई के लिए अंत में 24 दिसंबर 1899 को बिरसा के अनुयायियों ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़ दिया. 5 जनवरी 1900 तक पूरे छोटानागपुर में विद्रोह की चिंगारियां फैल गई। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन शुरू कर दिया ।
9 जनवरी 1900 के ऐतिहासिक दिन डोमबाड़ी पहाड़ी पर अंग्रेजों से लड़ते हुए सैकड़ों मुंडाओं ने शहादत दी, बिरसा मुंडा काफी समय तक तो अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए थे, लेकिन एक स्थानीय गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए।
9 जून 1900 को रांची जेल में बिरसा मुंडा का निधन हो गया. इसे बिरसा मुंडा शहादत दिवस भी कहते हैं. अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा का संघर्ष 6 वर्षों से अधिक चला. भले बिरसा मुंडा का निधन हो गया था लेकिन बिरसा के ‘उलगुलान’ से अंग्रेज़ी हुकूमत इतनी डर गई थी कि उसने मजबूर होकर आदिवासियों के हक की रक्षा करने वाला छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट पारित किया।
भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी संघर्ष से आदिवासी समाज में स्वाभिमान और सम्मान की ज्योति जलायी। अमर शहीद बिरसा मुंडा ने अबुआ दिशुम अबुआ राज यानि हमारा देश,हमारा राज का नारा दिया ।
अमर शहीद बिरसा मुंडा जी के नेतृत्व में 19 वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह 19 वीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है ! इसे उलगुलान नाम से भी जाना जाता है मुंडा विद्रोह झारखंड का सबसे बड़ा और अंतिम जनजाति विद्रोह था जिसमें हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए।
25 साल की उम्र में ही बिरसा मुंडा ने स्वाभिमान और सम्मान के क्रांति का आगाज किया वह आदिवासियों के लिए हमेशा प्रेरणादायी रहेगा । अमर शहीद बिरसा मुंडा जी की शहादत उनकी कुर्बानी उनके संघर्षों के चलते आदिवासी समाज को स्वाभिमान और सम्मान से जीने की एक नई राह दी !!
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संग्रहित mn sonawane pune
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