जन्मदिन विशेष : लाल बहादुर शास्त्री (पूर्व प्रधानमंत्री)
"जैसा मैं दिखता हूं उतना साधारण मैं हूं नहीं"
- लाल बहादुर शास्त्री
लोगों को सच्चा लोकतंत्र या
स्वराज कभी भी असत्य और
हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता है
||शास्त्री जयंती की शुभकामनाएं...||
जय जवान-जय किसान’ का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। अपनी सादगी के लिए चर्चित और कुशल नेतृत्व क्षमता के धनी शास्त्री जी की उनकी साफ-सुथरी छवि के कारण विपक्षी भी हमेशा सम्मान करते थे। अभावों में जीने के बावजूद उनके विचार बेहद उच्च थे। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था। जन्म के आठ महीने बाद ही उनके पिता गुजर गए। शास्त्री जी का बचपन ननिहाल में ही गुजरा और शुरुआती शिक्षा-दीक्षा भी उन्हें वहीं से मिली।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳"जैसा मैं दिखता हूं उतना साधारण मैं हूं नहीं"
— 𝐃𝐇𝐄𝐄𝐑𝐀𝐉 𝐊𝐔𝐌𝐀𝐑 𝐏𝐀𝐋 (@DheerajPal335) October 2, 2020
- लाल बहादुर शास्त्री
||शास्त्री जयंती की शुभकामनाएं...||#ShastriJayanti https://t.co/WODmSfmReN
🌹 शास्त्री जी की सादगी 🌹
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_🎂 जन्मदिन विशेष : लाल बहादुर शास्त्री (पूर्व प्रधानमंत्री) 🎂_
बात तब की है, जब शास्त्रीजी इस देश के प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे थे। एक दिन वे एक कपड़े की मिल देखने के लिए गए। उनके साथ मिल का मालिक, उच्च अधिकारी व अन्य विशिष्ट लोग भी थे। मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुंचे तो उन्होंने साड़ियां दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियां उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियां देखकर कहा- 'साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?' 'जी, यह साड़ी 800 रुपए की है और यह वाली साड़ी 1 हजार रुपए की है।' मिल मालिक ने बताया।
'ये बहुत अधिक दाम की हैं। मुझे कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए,' शास्त्रीजी ने कहा। यहां स्मरणीय है कि यह घटना 1965 की है, तब 1 हजार रुपए की कीमत बहुत अधिक थी। 'जी, यह देखिए। यह साड़ी 500 रुपए की है और यह 400 रुपए की' मिल मालिक ने दूसरी साड़ियां दिखलाते हुए कहा। 'अरे भाई, यह भी बहुत कीमती हैं। मुझ जैसे गरीब के लिए कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए, जिन्हें मैं खरीद सकूं।' शास्त्रीजी बोले। 'वाह सरकार, आप तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, गरीब कैसे? हम तो आपको ये साड़ियां भेंट कर रहे हैं।' मिल मालिक कहने लगा। 'नहीं भाई, मैं भेंट में नहीं लूंगा', शास्त्रीजी स्पष्ट बोले।
क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री को भेंट दें', मिल मालिक अधिकार जताता हुआ कहने लगा। 'हां, मैं प्रधानमंत्री हूं', शास्त्रीजी ने बड़ी शांति से जवाब दिया- 'पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद नहीं सकता, वह भेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊं। भाई, मैं प्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते दाम की साड़ियां ही दिखलाएं। मैं तो अपनी हैसियत की साड़ियां ही खरीदना चाहता हूं।' मिल मालिक की सारी अनुनय-विनय बेकार गई। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की साड़ियां ही दाम देकर अपने परिवार के लिए खरीदीं। ऐसे महान थे शास्त्रीजी, लालच जिन्हें छू तक नहीं सका था।
शिक्षा:-
उक्त प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी उच्च पद का अभिमान न करके सादगी पूर्वक जीवन जीना चाहिए। साथ ही किसी भी प्रकार के फ्री के लालच से बचकर ही रहना चाहिए।