गुनाहों का देवता - धर्मवीर भारती Book Review By- Rashmi Malwiya
ये अच्छा है पहले एक स्त्री को सिखा दो जीना ,जीवन के मायने ...
उसे पानी मे डाल कर मछली बना दो उसे तैरना सिखा दो, उसे सिखा दो की त्वचा से सांस कैसे ली जाती है ।
उसे जता दो की तुम जल की रानी हो उसे कह दो की विस्तार ही तुम्हारा जीवन है उसे समझा दो की पानी में कोई सीमा तुम्हें नही रोक सकेगी।
और जब वह पानी के गहरे में जाकर साँस लेना सीख जाए तब फिर एक दिन उससे कहो अब मैं जाता हूँ तुम पानी में ही रहती हो मुझे जमीन पर रहना है वहाँ के नियम मानना है जमीन पर तुम पैर नही रख पाओगी अगर रखना भी चाहो तब भी नही क्योंकि तुम तो जल की रानी हो।
मर जाओगी ।
तुम्हारा प्रेम उसके लिए जल था अब वह क्या करे जल में रहेगी तो मरेगी जमीन पर रहेगी तो तड़प तड़प कर मरेगी ।
वो मछली सुधा हो जाती है ।
पानी की जगह जमीन हो चुके चंदर को देखती है ।
देखती है उन आँखो से जो चंदर नही सहन कर पाता देखता भी नही क्योंकि उन आँखों मे पानी नही है ,सवाल नहीं है ,ताप नही है ।
किस बात का जवाब दे चंदर ....
जब सुधाएँ मर जाती हैं तब चन्दरों को जीना होता है ।
Review By - रश्मि मालवीया