अद्भुत गधा.....!


अद्भुत गधा.....!
एक व्यक्ति बाजार में आवाज़ लगा रहा था।
गधा ले लो... 5,00,000 रुपये में गधा ले लो !!
गधा बहुत ही कमजोर था।
वहाँ से एक राजा का अपने मंत्रियों  के साथ गुजरना  हुआ !!
राजा अपने कुछ मंत्रियों के साथ गधे के पास आया और कड़कती आवाज मे पूछा कि कितने में बेच रहे हो?उसने कहा साहेब पाँच लाख रुपये का,
राजा हैरान होते हुए, इतना महंगा? ऐसा क्या खास है इसमें?
वो व्यक्ति कहने लगा... साहेब जो इस पर बैठता है उसे भगवान /अल्लाह का दरबार दिखाई देने लगता है।
राजा को विश्वास नहीं हुआ वो कहने लगा: अगर तुम्हारी बात सच हुई तो हम इसे एक करोड़ रुपये का खरीद लेंगे,
लेकिन अगर तुम्हारी बात झूठ हुई तो तुम्हारा सर क़लम कर दिया जायेगा,
साथ ही अपने एक खास मंत्री से कहा कि इस पर बैठो और बताओ कि क्या दिखता है?
जब मंत्री बैठने लगा तो गधे वाले ने कहा: श्रीमान जी जरा होशियार! भगवान का दरबार किसी अपवित्र आदमी को दिखाई नहीं देता।
मंत्री: हम अपवित्र नहीं हैं, हटो सामने से। मंत्री यह कहकर गधे पर बैठ गया लेकिन उसे कुछ नहीं दिखा।
अब वह यह सोचने लगता है कि अगर सच कह दिया तो बहुत बदनामी होगी और लोग क्या सोचेंगे ? कि इतने बडे मंत्री और अपवित्र....?? फिर तो हमारी इज्जत गई इसलिए चिल्लाते हुए कहा कि.....
धन्य हो प्रभु! आपको साक्षात देखकर मेरा तो जीवन ही सुफल हो गया।पूरा का पूरा भगवान का दरबार।वाकई अद्भुत दृश्य देखकर मेरा तो दिल बाग बाग हो गया।
राजा ने जिज्ञासा से कहा: हटो जल्दी हमें भी देखने दो, और खुद गधे पर बैठ गया!
दिखाई तो उसे भी कुछ न दिया,
लेकिन राजसी पद की गरीमा और लोकतंत्र के गौरव को बनाए रखते हुए आंखों में आंसू ले आया और कहा: कि मै धन्य हो गया.....
वाह मेरे मालिक वाह!
अद्भुत सीन है,मुझे सिर्फ भगवान का दरबार ही नहीं बल्कि भगवान  प्रभु का संपूर्ण साम्राज्य और उनके सारे परिवार के दर्शन हो रहे हैं।मैं तो यह दृश्य देखकर धन्य हो गया हूं।वाह! क्या करामाती गधा है!
कितना पवित्र जानवर है!
मेरा मंत्री मुझ जितना पवित्र नहीं है, उसे सिर्फ भगवान राम जी दरबार के ही दृश्य दिखाई दिया, मुझे तो साथ-साथ स्वर्ग भी दिखाई दे रहा है!पूरा का पूरा ईश्वर का साम्राज्य दिखाई दे रहा है।
राजा के उतरते ही जनता टूट पड़ी, कोई गधे को छूने की कोशिश करने लगा, कोई चूमने की, कोई उसके बाल काट कर प्रसाद के तौर पर ले जाने लगा... आदि

जरा सोचें..?
यही हाल वर्तमान में हमारे है जो हम लकीर के फकीर बनकर चले ही जा रहे हैं। आज दिन तक हमने कभी भी जाना नही सिर्फ माना है वो भी स्वयं के भीतरी अनुभव के बिना, हजारों वर्षों से यही धारणा चली आ रही है यदि किसी एकाध ने साहस दिखा कर सत्य जाना हैं तो भी हम नही मानते क्योंकि हम तो बस कथावाचक और कथाओं के आधार पर चलने वाली भीड़ का मात्र एक हिस्सा है जिसके कारण समाज और देश में रहने वाले कुछ पाखंडियों और मक्कारों का चांदी है, जो धर्म और मजहब की आड़ लेकर लोगों को धोखा दे रहे हैं, और अपना कारोबार चला रहे हैं उन्हें गुमराह कर रहे हैं, और भोली-भाली जनता भी अंधे बन कर उनके पीछे चल पड़ती हैं..! स्वर्गलोक की आंकाक्षा मे पूरा जीवन बर्बाद करने के बाद भी..... खाली हाथ ही लौटते हैं।

🌹 सत्य ही परमात्मा है परमात्मा ही प्रकृति है प्रकृति ही जीवन है...... ✍️✍️

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