' कोहबर की शर्त' एक ऐसा उपन्यास जिस पर दो-दो फिल्में बन चुकी हैं और दोनों बेहतरीन।'नदिया के पार' फिल्म कितनी बार देखा है मुझे खुद याद नहीं।ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म की कहानी,अभिनय और गीत..सब एक से बढ़कर एक।'कवने दिशा में ले के चला रे बटोहिया' गीत तो बचपन से आज तक जुबान पर बार-बार आता रहा।यही फिल्म फिर नये रूप में "हम आपके हैं कौन" के रूप में सामने आई।कहानी,गीत व अभिनय नें फिर से सभी को मुग्ध करके रख दिया। तीन-चार दिन पहले इस लाजवाब पुस्तक की तलाश पूरी हुई।और आज इसे पढ़कर समाप्त किया है।केशव प्रसाद मिश्र जी के इस उपन्यास को पढ़ना दर्द,दुख,पीडा़ के संगम की अनुभूति से बार-बार गुजरने जैसा है।सुख-दुख के धरातल पर लिखी ये 150 से भी कम पृष्ठों की पुस्तक थोड़ा बहुत हँसाती है,लेकिन दुख के असीम महाद्वीप में छोड़ जाती है।उपन्यास की कहानी फिल्म से बिल्कुल अलग है।वही ओंकार,वही रुपा,वही गुंजा,वही चंदन..सारे पात्र,सारे स्थान वही जो 'नदिया के पार' में दिखते हैं,लेकिन कहानी बिल्कुल अलग।उपन्यास पर बनी दोनों फिल्मों का समापन सुखांत है,लेकिन प