मुझे उतनी दूर मत ब्याहना - निर्मला पुतुल

बाबा! मुझे उतनी दूर मत ब्याहना जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हे मत ब्याहना उस देश में जहाँ आदमी से ज़्यादा ईश्वर बसते हों जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ वहाँ मत कर आना मेरा लगन वहाँ तो कतई नही जहाँ की सड़कों पर मान से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटर-गाडियाँ ऊँचे-ऊँचे मकान और दुकानें हों बड़ी-बड़ी उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता जिस घर में बड़ा-सा खुला आँगन न हो मुर्गे की बाँग पर जहाँ होती ना हो सुबह और शाम पिछवाडे से जहाँ पहाडी पर डूबता सूरज ना दिखे। मत चुनना ऐसा वर जो पोचाई और हंडिया में डूबा रहता हो अक्सर काहिल निकम्मा हो माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर कोई थारी लोटा तो नहीं कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी अच्छा-ख़राब होने पर जो बात-बात में बात करे लाठी-डंडे की निकाले तीर-धनुष कुल्हाडी जब चाहे चला जाए बंगाल, आसाम, कश्मीर ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाया फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने जिन हाथों ने नहीं दिया कभी ...